इन्द्रिय, सत्व (मन) ओर आत्मा का सयोग आयु किंवा जीवन और इस (जीवन किंवा आयु) का शास्त्र (आयुके वेद) यह आयुर्वेद मानव-जीवन के सर्वागडीण विकास का ही शास्त्र है। फिर इसकी सीमा कैसी?
'न ह्यस्ति सुतरामायुर्वेदस्य पारम् । तस्मादप्रमत्त: अभियोगेऽस्मिन्
गच्छेत् उरमित्रस्यापि बच: यशस्यं आयुष्यं श्रोतव्यमनुविधातव्यं ।।'
प्रस्तुत पुस्तक आयुर्वेद का कुम्भ है जिसमें सारतत्व के माध्यम से अमृत भरा है । इस पुस्तक में आयुर्वेद के विषय में जो भी कहा गया है खुले मन से बैद्यनाथ प्रकाशन ने सदैव उसका निर्वाह करने का प्रयत्न किया और सफल भी रहै। जो सारांश इस पुस्तक में दृष्टगत होना है, वही अन्य मौलिक ग्रन्यों में दिखाई देता है । बैद्यनाथ की चिता है कि आयुर्वेद के माध्यम से मानव एव प्राणी जगत को अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो ''आदानं हि विसर्गाय सतां वारिमुचामिव'' के अपने अति पुराने आदर्श पर चलकर यह संस्थान विगत 63 वर्षों से आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार का सराहनीय कार्य कर रहा है इस संस्थान के माध्यम से आयुर्वेद के अध्ययन-शिक्षण तथा चिकित्सा व्यवसाय को भी निरन्तर प्रेरणा और प्रोत्साहन देने का कार्य हो रहा है|
Ayurveda Saarsangraha
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